सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥9॥
सत्त्वम्-सत्वगुण; सुखे-सुख में; सबजयति–बाँधता है; रजः- रजोगुण; कर्माणि-कर्म के प्रति; भारत-भरतपुत्र, अर्जुन; ज्ञानम्-ज्ञान को; आवृत्य-ढकना; तु–लेकिन; तम:-अज्ञानता का गुण; प्रमादे-मोह; सञ्जयति-बाँधता है; उत–वास्तव में।
BG 14.9: सत्वगुण सांसारिक सुखों में बांधता है, रजोगुण आत्मा को सकाम कर्मों की ओर प्रवृत्त करता है और तमोगुण ज्ञान को आच्छादित कर आत्मा को भ्रम में रखता है।
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सत्वगुण की प्रबलता से भौतिक जीवन के कष्ट कम हो जाते हैं और सांसारिक इच्छाएँ शांत हो जाती हैं। यह किसी की इच्छा के अनुकूल संतुष्टि की भावना को बढ़ाता है। यह शुभ तो है किन्तु इसका नकारात्मक पहलू भी हो सकता है। उदाहरणार्थ वे जो संसार में कष्ट पाते हैं औरअपने मन में उठने वाली कामनाओं से विक्षुब्ध रहते हैं, वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित होते हैं और यह प्रेरणा उन्हें आध्यात्मिक मार्ग की ओर ले जाती है किन्तु सत्वगुण से सम्पन्न लोग सरलता से आत्म संतुष्ट तो हो जाते हैं लेकिन वे आगे उन्नति कर लोकातीत अवस्था को प्राप्त करने में रूचि नहीं लेते।
सत्वगुण बुद्धि को ज्ञान से भी प्रकाशित करता है। यदि यह आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त नहीं होता तब ऐसे ज्ञान के फलस्वरूप अभिमान उत्पन्न होता है और यह अभिमान भगवान की भक्ति के मार्ग में बाधक बन जाता है। यह प्रायः वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों आदि में दिखाई देता है। उनमें सामान्य रूप से सत्वगुण की प्रधानता होती है क्योंकि वे अपना समय और ऊर्जा ज्ञान को पोषित करने में लगाते हैं। फिर भी वे जो ज्ञान अर्जित करते हैं वह प्रायः उन्हें घमण्डी बना देता है और वे यह अनुभव करने लगते हैं कि ज्ञान अर्जन करने से परे कोई सत्य नहीं है। इस प्रकार से इन्हें धार्मिक ग्रंथों और भगवद् अनुभूत संतों के प्रति विश्वास विकसित करना कठिन प्रतीत होता है। रजोगुण की प्रधानता जीवात्मा को अथक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है। संसार के प्रति उनकी आसक्ति, अधिक सुख प्राप्त करने की प्राथमिकता, प्रतिष्ठा, सम्पत्ति और शारीरिक सुख उन्हें संसार में कड़ा परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि वे उन लक्ष्यों और पदार्थों को प्राप्त कर सकें जिन्हें वे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं।
रजोगुण पुरुष और स्त्री में आकर्षण बढ़ाता है और काम वासना उत्पन्न करता है। कामवासना की तुष्टि हेतु पुरुष और स्त्री वैवाहिक संबंध बनाते है और घर और गृहस्थी के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। घर की देखभाल और रख-रखाव के लिए धन की आवश्यकता होती है इसलिए वे आर्थिक विकास के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं। इस प्रकार से वे गहन गतिविधियों में संलग्न रहते हैं लेकिन प्रत्येक क्रिया कर्म उत्पन्न करती है जो उन्हें भौतिक अस्तित्व में बांधती हैं।
अज्ञानता का गुण मनुष्य की बुद्धि को आच्छादित कर लेता है और सुख की कामना अब विकृत रूप से प्रकट होती है। उदाहरणार्थ, हम सभी जानते हैं कि सिगरेट पीना या धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सिगरेट के पैकेट पर सरकारी प्राधिकारियों द्वारा जारी आदेशानुसार चेतावनी लिखी होती है। धूम्रपान करने वाले उसे पढ़ते हैं किन्तु फिर भी धूम्रपान करना नहीं छोड़ते। ऐसा इसलिए होता है कि उनकी बुद्धि अपनी विवेक शक्ति खो देती है और धूम्रपान का आनन्द लेने के लिए वे स्वयं को हानि पहुँचाने में संकोच नहीं करते। किसी ने उपहास करते हुए कहा है-'सिगरेट के एक छोर पर आग से सुलगी हुई पाइप है तथा उसके दूसरे छोर पर मूर्खता है।' यही तमोगुण का प्रभाव है जो आत्मा को अज्ञानता के अंधकार में ले जाता है।